यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥7॥
यदा-यदा-जब-जब भी; हि-निश्चय ही; धर्मस्य-धर्म की; ग्लानिः-पतन; भवति होती है; भारत-भरतवंशी, अर्जुन; अभ्युत्थानम्-वृद्धि; अधर्मस्य-अधर्म की; तदा-उस समय; आत्मानम्-स्वयं को; सृजामि–अवतार लेकर प्रकट होता हूँ; अहम्–मैं।
BG 4.7: जब जब धरती पर धर्म की ध्वनि और अधर्म में वृद्धि होती है तब उस समय मैं पृथ्वी पर अवतार लेता हूँ।
Start your day with a nugget of timeless inspiring wisdom from the Holy Bhagavad Gita delivered straight to your email!
वस्तुतः धर्म एक नियत कर्म है जो हमारे आध्यात्मिक उत्थान और उन्नति में सहायक होता है और धर्म के प्रतिकूल आचरण को अधर्म कहा जाता है। जब धरती पर अधर्म प्रबल हो जाता है तब संसार के सृष्टि कर्ता और नियामक भगवान प्रकट होकर अधर्म का विनाश कर धर्म की स्थापना करते हैं। इस प्रकार से भगवान के प्रकट होने को अवतार कहा जाता है। संस्कृत भाषा के शब्द 'अवतार' शब्द को अंग्रेजी भाषा के शब्दकोश में भी सम्मिलित किया गया है और इसका प्रयोग प्रायः स्क्रीन पर अपना चित्र दर्शाने के लिए किया जाता है। इस पुस्तक में हम भगवान के दिव्य प्राकट्य के अर्थ के लिए इस शब्द का प्रयोग करेंगे। श्रीमद्भागवतम् में 24 अवतारों का उल्लेख मिलता है किन्तु वैदिक धर्मग्रंथों में अनन्त अवतारों का वर्णन किया गया है।
जन्मकर्माभिधानानि सन्ति मेऽङ्ग सहस्रशः।
न शक्यन्तेऽनुसंख्यातुमनन्तत्त्वान्मयापि हि।।
(श्रीमद्भागवतम्-10.51.36)
"कोई भी ईश्वर के अनन्त अवतारों की गणना नहीं कर सकता। इन अवतारों का वर्गीकरण निम्न चार प्रकार से किया गया है"
1. आवेशावतार-जब भगवान अपनी दिव्य शक्तियाँ किसी पुण्य जीवात्मा में प्रकट कर उसके माध्यम से अपनी लीलाएँ करते हैं। नारद मुनि इस का उदाहरण हैं। इसके अतिरिक्त महात्मा बुद्ध का अवतार भी इसका उदाहरण है।
2. प्रभवावतार-ये भगवान के साकार रूप के अवतार हैं जिसमें वे अपनी कुछ दिव्य शक्तियों
का प्रदर्शन करते हैं। प्रभवावतार भी दो प्रकार के होते हैं।
(क) जब भगवान थोड़े समय के लिए प्रकट होकर अपना कार्य सम्पन्न कर चले जाते हैं। हंसावतार इसका उदाहरण है जहाँ भगवान ने प्रकट होकर चार कुमारों के प्रश्नों के उत्तर दिये और फिर अन्तर्ध्यान हो गये।
(ख) जब भगवान अवतार लेकर कई वर्षों तक पृथ्वी पर रहते हैं। वेदव्यास जिन्होंने 18 पुराणों और महाभारत की रचना की एवं वेदों को चार भागों में विभक्त किया था, वे इस प्रकार के अवतार का उदाहरण है।
3. वैभवातार-जब भगवान विराट रूप में प्रकट होकर अपनी दिव्य शक्तियों का प्रदर्शन करते हैं। जैसे मत्स्यवतार, कूर्मावतार और वराहावतार ये सभी वैभावतार के उदाहरण हैं।
4. परावस्थावतार-जब भगवान अपनी दिव्य शक्तियों सहित स्वयं अवतार लेकर पृथ्वी पर अवतरित होते हैं। श्रीकृष्ण, श्रीराम और नृसिंहावतार सभी परावस्थावतार हैं।
इस वर्गीकरण का तात्पर्य यह दर्शाना नहीं है कि कोई अवतार अन्य अवतारों से श्रेष्ठ है। वेदव्यासजी जो स्वयं भगवान का अवतार थे, ने स्पष्ट वर्णन किया है-" सर्वे पूर्णाः शाश्वताश्च देहास्तस्यपरमात्मनः" (पद्मपुराण) अर्थात् "सभी अवतार भगवान की दिव्य शक्तियों से परिपूर्ण थे।" इसलिए हमें किसी अवतार की तुलना में किसी अन्य अवतार को बड़ा या छोटा नहीं समझना चाहिए। भगवान अवतारों के दौरान सम्पन्न किए जाने वाले कार्यों के आधार पर अपेक्षित शक्तियों के साथ प्रकट होते हैं। शेष शक्तियाँ अवतार में अप्रकट रहती हैं इसलिए उपर्युक्त वर्गीकरण किया गया है।